कुछ को ऊँची सी अटारी पे खड़ा लगता हूँ ।।
कुछ को इस शह्र के गटर में पड़ा लगता हूँ ।।
कुछ सघन सब्ज़-ओ-सायादार मुझे कहते
हैं ,
कुछ को सूखा, विरल व पत्रझड़ा लगता हूँ ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
5 comments:
वाह वाह , बहुत ही खूबसूरत , पूरी जिंदगी का फ़लसफ़ा कह डाला आपने तो अपने इस कतरे में :) सुदर ।
धन्यवाद ! अजय कुमार झा साहब !
Very Nice Sir...............Jivan Esi Ka Nam Hai.........
धन्यवाद ! SATYA NARAYAN जी !
धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !
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