Thursday, February 21, 2013

मुक्तक : 64 - पहना दी उसने


पहना दी उसने महँगी , उँगली में इक अँगूठी ॥ 
मैंने लगा ली उससे , शादी की आस झूठी ॥ 
सब कर दिया समर्पित , बदले में उसको अपना ,
इक छल में ज़िन्दगानी , की डोर चट से टूटी ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Pratibha Verma said...

क्या बात है ...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...