Sunday, February 3, 2013

26. ग़ज़ल : उनका इक्का.....



आख़री क्या सोचकर पहला लिखा जी ॥
उनका इक्का किसलिए दहला लिखा जी॥
जिसको जग कहता न थकता वाटिका है ,
तुमने उसको ख़ाली इक गमला लिखा जी ॥
पाक था , उजला था , एकदम साफ़ था वो ,
फिर भी तुमने उसको धुर मैला लिखा जी ॥
वाँ सभी लोगों के सिर बिन बालों के थे ,
तुमने कुछ को ही मगर टकला लिखा जी॥
अपना घर हरिद्वार , काशी , द्वारका और ,
ग़ैर के मंदिर को भी चकला लिखा जी ॥
तुमने रिश्वत के लिए तारीख़ में क्यों ,
झूठे को हरिचंद का पुतला लिखा जी ॥
झूठ है या आधा सच है सूर को क्यों ,
तुमने काना , गूँगे को हकला लिखा जी ॥
घर से वो भागा तुम्हारे ज़ुल्म से पर 
तुमने मर्ज़ी से उसे निकला लिखा जी ॥
मुंसिफ़ाना और मुनासिब अपने सारे ,
दूसरों का हर क़दम घपला लिखा जी॥
जब समझ आई न उसकी बात तो फिर ,
तुमने दानिशमंद को पगला लिखा जी ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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