Thursday, February 14, 2013

मुक्तक : 50 - ऐसा लगता था


ऐसा लगता था वो हमको घास रहे हैं डाल ॥
हँस-हँस कर करते थे ऐसा मेरा इस्तक़बाल ॥
बेसब्री में ईलू-ईलू मुँह से निकला ज्यों ही ,
उसने ऐसा चाँटा मारा लाल कर दिया गाल ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

हाथ वीणा आसन कमल है,
ज्ञानपूरित है मुखमंडल तेरा
विचरण में तुम हंसवाहिनी,
अब ज्ञानहंस सा प्यार दे।
हे विद्या की देवी मां शारदे।।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

अब ज्ञानहंस सा प्यार दे। धन्यवाद ! Shyam Snehi जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...