Wednesday, July 31, 2013

मुक्तक : 295 - ऊँछती है मेरी


ऊँछती है मेरे बालों को अपनी पलकों से ॥
झाड़ती है माँ मेरी धूल अपनी अलकों से ॥
कैसे हो जाऊँ उसकी आँख से ओझल उसको ,
चैन आता है नित्य मेरी सतत झलकों से ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

गोदान,ग़बन,निर्मला................

गोदान ,ग़बन ,निर्मला इत्यादि उपन्यास ॥
जितने थे प्रेमचंद के सारे थे बहुत ख़ास ॥
लिक्खीं थीं जितनी भी कहानियाँ कफ़न तलक ,
आदर्श से यथार्थ के सब ही थीं आस-पास ॥
सब ही थीं आस-पास जो लिक्खा था था क़माल ,
पढ़ने को उन्हे कितनों ने सीखी थी हिन्दी-भाष ॥  
 -डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 294 - पाँवों के होते



पाँवों के होते हाथों से बढ़ना सही नहीं ॥
दुनिया मिटा के जन्नतें गढ़ना सही नहीं ॥
बेहतर है आदमी ज़मीं पे ही करे बसर ,
छत छोड़ आस्मान पे चढ़ना सही नहीं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Tuesday, July 30, 2013

मुक्तक : 293 - जब तक थे



जब तक थे तेरे ख़्वाबों ख़यालों में खोये से ॥
जागे हुए भी हम थे जैसे सोये-सोये से ॥
ठोकर ने तेरी नींद तो उड़ा दी हाँ मगर ,
हँसते हुए भी लगते अब तो रोये-रोये से ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Monday, July 29, 2013

मुक्तक : 292 - लायक नहीं वो माना



लायक नहीं वो माना तू के भी पर आप बोल ॥
बच्चा है फिर भी उसको अपना माई-बाप बोल ॥
गर्दन दबी है तेरी उसके पाँव में इस वक़्त ,
बेहतर है उसके पाप मत अभी तू पाप बोल ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 291 - न तिनका है न


न तिनका है न कश्ती है न इक पतवार अपना है ॥
चलो अब डूब जाने में ही बेड़ा पार अपना है ॥
यूँ लाखों से है पहचान औ हज़ारों से मुलाक़ातें ,
मगर क्या फ़ाइदा इक भी न सच्चा यार अपना है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Sunday, July 28, 2013

मुक्तक : 290 - न हाथ मिलाया न


न हाथ मिलाया न लिपटकर चला गया ॥
यों ही मिले बग़ैर पलटकर चला गया ॥
वादा किया था जिसने उम्र भर के साथ का ,
दो दिन में अपनी बात से नट कर चला गया ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 289 - ज़माना आ गया ओह




ज़माना आ गया है ओह बुरा यार अब तो !!
हवस को दे रहा है नाम जवाँ प्यार अब तो !!

 किसी को रूह की न ख़ूबसूरती लाज़िम ,
हुआ है जिस्म का हर एक तलबगार अब तो ॥

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Saturday, July 27, 2013

मुक्तक : 288 - जहाँ पर हार.............


जहाँ पर हार मिलने पर भी ताज़ा हार मिलता है ॥
हिक़ारत की जगह सच्चा दिलासा प्यार मिलता है ॥
यक़ीनन वो जगह जन्नत नहीं तो और क्या होगी ,
जहाँ ज़ख़्मी दिलों को मरहम औ’’ तीमार मिलता है ॥

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Friday, July 26, 2013

मुक्तक : 287 - क्या ख़ूब हिमाक़त


क्या ख़ूब हिमाक़त की हमने ॥
बेशक़ ही ये ज़ुर्अत की हमने ॥
इक तरफ़ा औ उस पर तुर्रा ये ,
दुश्मन से मोहब्बत की हमने ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 286 - बहुत आसानियों


बहुत आसानियों से कब , वो मुश्किल से उतर बैठा
ख़ुद अपने पाँव अपनी ही , वो मंज़ि से उतर बैठा
ख़ुद अपनी ही बदौलत अपनी भरसक कोशिशों से वो ,
जो उतरा था कभी दिल में , तहे दिल से उतर बैठा
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Thursday, July 25, 2013

मुक्तक : 285 - जो गड्ढा है




जो गड्ढा है वो कुछ करले , समंदर बन नहीं सकता ।।
सिपाही चार बित्ते का , सिकंदर बन नहीं सकता ।।
उड़े कितनी भी ऊँची बाज से तितली न जीतेगी ,
बहुत उछले मगर मेंढक , तो बंदर बन नहीं सकता ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 284 - आलमे बेवफ़ाई में


आलमे बेवफ़ाई में वफ़ा-वफ़ा लगता ॥
बददुआओं की भीड़ में दुआ-दुआ लगता ॥
ऐसा वो हो न हो मगर ज़रूर सूरत से ,
इक नज़र में तो आस्मानी-फ़रिश्ता लगता ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Wednesday, July 24, 2013

मुक्तक : 283 - वांछित थे उपन्यास


वांछित थे उपन्यास मिलीं किन्तु वृहद गल्प ॥
अत्यंत के भिक्षुक थे पाया न्यूनतम-अत्यल्प ॥
ये भाग्य-दोष था कि जिस लिए किए थे यत्न,
उसके उचित स्थान पे प्रायः मिले विकल्प ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 282 - अभी धोख़ा नहीं खाया


अभी धोख़ा नहीं खाया अभी मातम से ख़ाली है ॥
ग़ज़ल कहना तो है लेकिन अभी दिल ग़म से ख़ाली है ॥
खड़ा कर दे जो बहरों के भी कानों को वो कहना है ,
मगर आवाज़ अभी मेरी ये उस दमख़म से ख़ाली है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति  

Tuesday, July 23, 2013

मुक्तक : 281 - दिल में कितनी..........


दिल में कितनी थी तमन्नाएँ सब्ज़ो-लाल मगर ॥
रह गईं होते - होते पूरी बाल - बाल मगर ॥
कुछ ख़तावार हम थे कुछ थी हमारी क़िस्मत ,
चाहते थे उड़ें आज़ाद मिले जाल मगर ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 280 - रेग भी प्यासे को


रेग भी प्यासे को जैसे आब सा आता नज़र ॥
एक क़त्रा भी बड़े तालाब सा आता नज़र ॥
यूँ ही मेरी आँखों को सच इन दिनों में रातों को ,
जुगनूँ चौदहवीं का इक महताब सा आता नज़र ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Monday, July 22, 2013

मुक्तक : 279 - वो मुझसे सरेआम..........



वो मुझसे सरेआम औ अकेले भी मिलती है ॥

पाते ही मेरे दीद मोगरे सी खिलती है ॥
लेकिन मेरे इजहारे मोहब्बत पे जाने क्यों ,
मौजों में पड़ी डूबती कश्ती सी हिलती है ॥

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 278 - राहों में कितनी.................

राहों में कितनी कितनी बार मिल चुका खड़ा ॥
करने को मुझसे ज़िद पे कई मुद्दतों अड़ा ॥
पैवस्त था डर दिल में इतना बेवफ़ाई का ,
मैं इसलिए इस इश्क़ के पचड़े में न पड़ा ॥

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Monday, July 8, 2013

मुक्तक : 277- अपने पैरों पर............

अपने पैरों पर ख़ुद अपना ही वज़न उठता नहीं ॥
फिर भी सब ढोते हुए मेरा बदन दुखता नहीं ॥
ज़िंदगी चलना है रुकना मौत है मानूँ हूँ मैं ,
इसलिए बिन पैर भी मेरा चलन रुकता नहीं ॥

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 276 - कुछ नहीं अफ़्सोस........

कुछ नहीं अफ़्सोस गर वो तुच्छ है नाचीज़ है ॥
वो मेरा है मुझको अपनी जान से भी अज़ीज़ है ॥
प्यार से सींचूँ उसे सच तह-ए-दिल से खाद दूँ ,
जानता हूँ ख़ूब वो कच्चा औ’’ पोला बीज है ॥

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Sunday, July 7, 2013

मुक्तक : 275 - तेरा हर इक.............


तेरा हर इक हुक़्म हँस-हँस 
कर बजा डालेंगे हम ॥
तेरे पीछे-पीछे आँखें 
बंद कर भागेंगे हम ॥
लीक पर ढर्रे पे तो 
सारा ज़माना चल रहा ,
कुछ नया कर के दिखा दे 
तो तुझे मानेंगे हम ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 274 - कब किसी क़िस्म..............

कब किसी क़िस्म की तदबीर काम आती है ?
नामो-शोहरत को तो तक़दीर काम आती है ॥
जब मुक़ाबिल हों तोपें बेहतरीन बंदूकें ,
तब गुलेलें न तो शमशीर काम आती है ॥

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 273 - बहुत हल्का मगर


बहुत हलका मगर भारी लगे है ॥
मुझे चिड़िया का पर भारी लगे है ॥
तुझे क्या सर उठाऊँ जबकि अपना ,
धरा काँधों पे सर भारी लगे है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 272 - रात दिन कर



 रात दिन कर तू वफ़ा सिर्फ़ वफ़ा की बातें ॥
मत डरा यार कर फ़रेबो दग़ा की बातें ॥
हो गई मुझसे जो गफ़्लत-ए-इश्क़ कर मुझसे ,
छोड़ ग़म दर्द की बस लुत्फ़ो-मज़ा की बातें ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Saturday, July 6, 2013

मुक्तक : 271 - सँकरी गली में



सँकरी गली में लंबी-चौड़ी कार ना चला ॥
चाकू से काट केक को तलवार ना चला ॥
बादल हैं तेरे पास तो सूखे में फाड़ उन्हेंं ,
लबरेज़ कुओं , नदियों में बौछार ना चला ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 270 - ईश्वर को ध्यान में रख

ईश्वर को ध्यान में रख पथ की विकट बलाएँ ॥
हमनें स्वयं ही हल कीं चुन-चुन के समस्याएँ ॥
कुछ भी तो सरलता से सौभाग्य से न पाया ,
जो कुछ मिला है करके घनघोर तपस्याएँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 269 - हर वक़्त बस


हर वक़्त बस तेरा ही नाम रखके ज़बाँ पर ॥
ढूँढूँ तुझे कहाँ-कहाँ जहाँँ में यहाँ पर ॥
मत आ सही-सही पता ही अपना बता दे ,
ख़ुद लापता ख़ुदा मैं पहुँच जाऊँ वहाँ पर ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Friday, July 5, 2013

मुक्तक : 268 - पोलिस वाले


पोलिस वाले इज्ज़त-प्यार से बोलेंगे ॥
बनिये दीन-ईमान से सौदा तोलेंगे ॥
बन जाएंगे हरिश्चंद्र जब सब नेता ,
कौए तब से कान में मिश्री घोलेंगे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 267 - जिसने कि ख़ुद


जिसने कि ख़ुद ही मुझको गुनहगार किया है ॥
हैरान हूँ उसी ने गिरफ़्तार किया है !
जानूँ न क्यों डुबो रहा है सूखी नहर में ,
नदियों से गहरी-गहरी जबकि पार किया है ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 266 - मिलते न ले




मिलते न ले चिराग़ भी ढूँढे से वफ़ादार ॥
अंधों से भी टकराएँ मगर ढूँढ के ग़द्दार ॥
ये कैसा ज़माना है कि दिल तो है सबके पास ,
लेकिन नहीं हैं मिलते दिलनवाज़ न दिलदार ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Thursday, July 4, 2013

मुक्तक : 265 - बस स्वप्न ही न देख


बस स्वप्न ही न देख न केवल विचार कर ॥
करना है जो भी तुझको तो वो आर-पार कर ॥
निश्शंक सादगी का पहन कर तू जामा चल ,
बस बैलगाड़ी चाल तज स्वयं को कार कर ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 264 - तेरे ख़र्च उठाने


तेरे ख़र्च उठाने हर दिन बिकता रहा हूँ मैं ॥
तुझको बनाने तू क्या जाने मिटता रहा हूँ मैं ॥
तुझको काले काले की आवाज़ न दे दुनिया ,
तुझको सूरज सा चमकाने घिसता रहा हूँ मैं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...