किस मुंँह से फिर मनाएँ , नववर्ष का वे उत्सव ।।
जिनको मिली न जीतें , जिनका हुआ पराभव ।।
व्यसनी तो करते सेवन ; हो ना हो कोई अवसर ,
कुछ लोग पान करते ; मदिरा का हर्ष में भर ,
कतिपय हों किंतु ऐसे ,भी लोग सर्वथा जो ;
पीते असह्य दुख में , आकण्ठ डूब आसव ।।
किस मुंँह से फिर मनाएँ , नववर्ष का वे उत्सव ।।
जिनको मिली न जीतें , जिनका हुआ पराभव ।।
जीवन में जिसके संशय ; धूनी रमा के बैठा ,
दुर्भाग्य घर में घुसकर ; डेरा जमा के बैठा ,
जिस मन में व्याप्त कोलाहल-चीत्कार-क्रंदन ,
इक रंच मात्र भी ना पंचम स्वरीय कलरव ।।
किस मुंँह से फिर मनाएँ , नववर्ष का वे उत्सव ।।
जिनको मिली न जीतें , जिनका हुआ पराभव ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति