Sunday, April 20, 2014

मुक्तक : 530 - यूँ तो कभी हम आँख


यूँ तो कभी हम आँख को अपनी भूले न नम करते हैं II
और ज़रा सी , छोटी सी बातों पर भी न ग़म करते हैं II
हम न तड़पते ग़ैर जिगर में तीर चुभोते तब भी ,
होती बड़ी तक्लीफ़ है तब जब अपने सितम करते हैं II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Saturday, April 19, 2014

मुक्तक : 529 - जब अपना ख़्वाब टूटा


जब अपना ख़्वाब टूटा बड़ा दिल का ग़म बढ़ा II
तब मरते कहकहों का यकायक ही दम बढ़ा II
जीने को और-और भी मरने लगे अपन ,
जब ज़ुल्म ज़िन्दगी पे हुआ जब सितम बढ़ा II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Friday, April 18, 2014

मुक्तक : 528 - कोयल-कुहुक से काक


कोयल-कुहुक से काक-काँव-काँव से पूछो II
इन झूठे शह्रों से न गाँव-गाँव से पूछो II
मेरी सचाई की जो चाहिए गवाहियाँ ,
हर-धूप-चाँदनी से छाँव-छाँव से पूछो II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Thursday, April 17, 2014

132 : ग़ज़ल - तंग बैठा था मैं


तंग बैठा था मैं ख़ल्वत के क़ैदख़ाने से ।।
आ गई तू कि ये जाँ बच गई रे जाने से ।।1।।
यूँ तो पहले भी थींं गुलशन में ये बहारें पर ,
ख़ार भी फूल हुए तेरे खिलखिलाने से ।।2।।
भूल जाने के जतन छोड़ना पड़े आख़िर ,
याद आती है बहुत और तू भुलाने से ।।3।।
मैं तड़पता था बिछड़ तुझसे ख़ूब रोता था ,
अब ख़ुशी से ही मरा जाऊँँ तेरे आने से ।।4।।
एक सूरज की ज़रूरत है दोस्तों मुझको ,
फ़ायदा , चाँद के ढेरों का , क्या लगाने से ?5।।
-डॉ.हीरालाल प्रजापति 

Wednesday, April 16, 2014

मुक्तक : 527 - घिनौने फूल को सुन्दर



घिनौने फूल को सुन्दर गुलाब कौन करे ?
कि ठहरे नाले को बहती चनाब कौन करे ?
लिखे हैं मैनें जो बिखरे भले-बुरे से सफ़े ,
उन्हें समेट के अच्छी किताब कौन करे ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Tuesday, April 15, 2014

मुक्तक : 526 - ना ज़रुरत से ज़ियादा


ना ज़रुरत से ज़ियादा न कम मनाने का II
चलते-चलते न खड़े हो न थम मनाने का II
इतना मस्रूफ़ रहें नापसंद कामों में ,
हमको मिलता ही नहीं वक़्त ग़म मनाने का II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Monday, April 14, 2014

मुक्तक : 525 - क्या वाँ यहाँ क्या सारे ही


क्या वाँ यहाँ क्या सारे ही जहान में पड़े II
ख़ालिस दिखावे झूठ-मूठ शान में पड़े II
औरों की नाँह अपनी वज़्ह ही कमाल है ,
ऊँचे से ऊँचे लोग भी ढलान में पड़े II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Sunday, April 13, 2014

मुक्तक : 524 - तिल-ख़ुशी से आस्मां



तिल-ख़ुशी से आस्मां सा दूर हूँ II
ताड़-ग़म सीने में ढो-ढो चूर हूँ II
पूछ मत मेरी मियादे ज़िन्दगी ,
यूँ समझ ले इक खुला काफ़ूर हूँ II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Friday, April 11, 2014

मुक्तक : 523 - जो कर रहा है तू वो



जो कर रहा है तू वो गुनह है ज़लाल है ।।
मरने का ग़म नहीं है मुझे ये मलाल है ।।
मैं तुझको सरपरस्त समझता था तू मगर ,
अपने ही हाथों कर रहा मुझको हलाल है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Thursday, April 10, 2014

मुक्तक : 522 - तल्लीन हो , तन्मय हो



( चित्र Google Search से साभार )

तल्लीन हो , तन्मय हो स्वयं को भी भूल हम ।।
पलकों से पहले चुनते थे सब काँटे-शूल हम ।।
आते थे वो जिस राह से फिर उसपे महकते ,
हाथों से बिछाते थे गुलाबों के फूल हम ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

131 : ग़ज़ल - कुछ को नटखट




सबको नटखट , शरीर और चुलबुली वो लगे ।।
मुझको संजीदा , सीधी-सादी औ भली वो लगे ।।1।।
सबको लगती सुपारी सी तो नारियल सी कभी ,
मुझको गुलशन के गुलमुहर की इक कली वो लगे ।।2।।
उसका हर अंग जैसे नाप-तौल कर हो बना ,
अज सरापा ही एक साँचे में ढली वो लगे ।।3।।
वैसे औलाद तो है इक ग़रीब की ही मगर ,
हर अदा से मुझे अमीर-घर पली वो लगे ।।4।।
उसकी कंगन खनक सी , घुँघरू की छनक सी हँसी ,
बामज़ावाज़ से तो नर्म मखमली वो लगे ।।5।।
दोस्तों को तो अम्न ही का है पयाम सदा ,
दुश्मनों को हमेशा ख़बरे-ख़लबली वो लगे ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

130 : ग़ज़ल - आतिश कभी है पानी..............




आतिश कभी है पानी ।।
ये मेरी ज़िन्दगानी ।।1।।
तुमको न लिखके रखते ,
हो याद मुँह ज़बानी ।।2।।
जो कुछ है पास अपने ,
सब रब की मेह्रबानी ।।3।।
जैसे कोई लतीफ़ा ,
ऐसी मेरी कहानी ।।4।।
ढूँढा तो सच ये पाया ,
ग़म ही है शादमानी ।।5।।
कितना सँभालिएगा ,
दौलत है आनी-जानी ।।6।।
जैसे है आया जोबन ,
पीरी भी सबको आनी ।।7।।
शुह्रत के इक सिवा सब ,
लगता है मुझको फ़ानी ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Wednesday, April 9, 2014

मुक्तक : 521 - इक नज़र गौर से देखो



( चित्र Google Search से साभार )

इक नज़र गौर से देखो जनाब की सूरत II
दिल फटीचर है मगर रुख नवाब की सूरत II
कैक्टस है वो कड़क ठोस ख़ुशनसीबी से ,
पा गया खुशनुमा नरम गुलाब की सूरत II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 520 - जबसे आया है ख़यालों में


जबसे आया है ख़यालों में खुलापन मेरे II
ज़र्द पत्तों में निखर आया हरापन मेरे II
वक़्त-ए-रुख्सत है मगर देखो हरक़तें मेरी ,
भर बुढ़ापे में छलकता है युवापन मेरे  II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Tuesday, April 8, 2014

मुक्तक : 519 - सब ख़ुशी से दूँगा सचमुच


सब ख़ुशी से दूँगा सचमुच अपना मनमाना तो ले II
तुझको चाहा इस ख़ता का मुझसे हर्जाना तो ले II
ढूँढता हूँ तुझको अपना सर हथेली पर लिए ,
तू दे तोहफ़ा--दिलमेरा ये नज़्राना तो ले II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

मुक्तक : 518 - दिखने में साफ़-सुथरे


दिखने में साफ़-सुथरे बीने-छने हुए थे II
लगते थे दूर से वो इक-इक चुने हुए थे II
ख़ुश थे कि दोस्त बनियों ने दाम कम लगाए ,
घर आके पाया सारे गेहूँ घुने हुए थे II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Monday, April 7, 2014

मुक्तक : 517 - सब दिल के भोले मुझको


सब दिल के भोले मुझको बदमाश नज़र आयें ?
तर्रार चुप मुज़र्रद अय्याश नज़र आयें ?
लगते कभी मुझे क्यों मुर्दे तमाम सोये ?
क्यों सोये लोग मुझको कभी लाश नज़र आयें ?
( मुज़र्रद = ब्रह्मचारी )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Sunday, April 6, 2014

मुक्तक : 516 - स्याह राहों में चमकते


स्याह राहों में चमकते रहनुमा महताब सी ।।
तपते रेगिस्ताँँ में प्यासों को थी शर्बत , आब सी ।।
उसका दिल लोगों ने जब फ़ुटबॉल समझा , हो गयी ,
उसकी गुड़-शक्कर ज़बाँँ भी ज़ह्र सी , तेज़ाब सी ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Saturday, April 5, 2014

129 : ग़ज़ल - यूँ दर्द से छटपटा



यूँ दर्द से छटपटा रहा हूँ ।।
मैं ज़िंदगानी घटा रहा हूँ ।।1।।
चखा ही मैनें कभी खाया ,
मगर कहें सब चटा रहा हूँ ।।2।।
मैं सेब होकर भी उस नज़र में ,
हमेशा कददू-भटा रहा हूँ ।।3।।
सभी हुए बाल-बच्चों वाले ,
मैं अब भी लड़की पटा रहा हूँ ।।4।।
उजाले वो भोर के सुनहरे ,
मैं साँझ का झुटपुटा रहा हूँ ।।5।।
वो बनके वेणी सदा रहे हैं ,
मैं साधुओं की जटा रहा हूँ ।।6।।
सटा सका जब न उनको सीने ,
मैं दिल को उनसे हटा रहा हूँ ।।7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Thursday, April 3, 2014

128 : ग़ज़ल - दिलचस्प नहीं दर्द भरी


दिलचस्प नहीं दर्द भरी साफ़बयानी  ।।
मैं आज जहाँ हूँ वाँ पहुँचने की कहानी ।।1।।
सूरत की कमी से न पढ़ा उसने मेरा दिल ,
हाँ रूह से इज्ज़त दी क़त्ई इश्क़ न जानी ।।2।।
चढ़ते को सलाम और लुढ़कते को अँगूठा ,
सदियों से भी , आदत है ये , लोगों की पुरानी ।।3।।
कुछ कर कि गुज़र कर न कभी आएँ दोबारा ,
जीवन में चढ़ा जोम , न जोबन , न जवानी ।।4।।
कर करके कई खड्ड भी प्यासे ही रहोगे ,
खोदोगे कुआँ एक ठो पा जाओगे पानी ।।5।।
हर हाल में होती है बुरी पीने की आदत ,
जब तक न फुँँका था ये जिगर बात न मानी ।।6।।
वो एक के बाद एक मुझे देते रहे ग़म ,
मैं लेता रहा जान मोहब्बत की निशानी ।।7।।
चाहा ही उसे जिसका न होना था मेरा तै,
समझा न कभी इश्क़ था या हेचमदानी ।।8।।
( हेचमदानी = मूर्खता , अज्ञान )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Wednesday, April 2, 2014

127 : ग़ज़ल - उसके इश्क़ में बेशक़ मैनें


उसके इश्क़ में बेशक़ मैनें ज़ीस्त को खोया था ।। 
लेकिन यार बिहिश्त भी तो जीते जी ही तो पोया था ।।1।। 
क्यों मानूँ न मैं उसका एहसाँ , शुक्र करूँ गिन-गिन ?
जिसने ख़ुद को मिटाकर पूरा मुझको बनोया था ।।2।।
कुछ तो होगा सबब सब सज्दा करते जहाँ जा-जा ,
इक मैनें ही अकेले क्यों वाँ सर न झुकोया था ?3।।
आँखों ने न मेरी इक क़तरा अश्क़ भी टपकाया ,
 दर्या भरके मगर दिल उसके हिज्र में रोया था ।।4।।
अब कंकड़ भी उठाना क्यों लगता है मुझे भारी ?
जब बचपन से ही सिर पर बस फ़ौलाद को ढोया था ।।5।।
अब आराम तो काँटों पर ही रूह को मिलता है ,
मेरा जिस्म कभी फूलों पर हाय ! न सोया था ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Tuesday, April 1, 2014

देवी-गीत ( 3 ) कोई परवा करूँ न अंजाम की


कोई परवा करूँ न अंजाम की II
पूजा अर्चा करूँ तेरे नाम की II
जय-जय-जय-जय-जय-जय अम्बे माँ II
जय-जय-जय-जय-जय-जगदम्बे माँ II
कोई परवा करूँ न.....................
पूजा अर्चा करूँ..........................
छोड़कर फल आसक्ति का ग़म ,
मैं तो निष्काम भक्ति करूँ II
तेरा कर-कर भजन अपने तन ,
मन में जीवन में शक्ति भरूँ II
तू ही सब कुछ है माँ इस गुलाम की II
पूजा अर्चा करूँ..........................
कोई परवा करूँ न.....................
चलते जाना मेरा काम है ,
चाहे मंजिल मिले न मिले II
नाव खेता रहूँगा सदा ,
चाहे साहिल मिले न मिले II
क्या पड़ी है माँ मुझको मुक़ाम की II
पूजा अर्चा करूँ..........................
कोई परवा करूँ न.....................
तेरे चरणों में ही ध्यान है ,
तेरे दर्शन की ही प्यास है II
आज या कल कभी न कभी ,
तुझको पाऊँगा विश्वास है II
कोई सुध न रहे काम-धाम की II
पूजा अर्चा करूँ..........................
कोई परवा करूँ न.....................
जय-जय-जय-जय-जय-जय अम्बे माँ II
जय-जय-जय-जय-जय-जगदम्बे माँ II

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...