Tuesday, December 31, 2013

दुनिया के हर कमाल का..........................


दुनिया के हर कमाल का जमाल मुबारक़ ॥ 
पुरलुत्फ़ ,रक्स ,धूम और धमाल मुबारक़ ॥ 
है आज सबके लब पे सिर्फ़ एक ही जुम्ला 
हो सबको नया साल बेमिसाल मुबारक़ ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 433 - जानवर को बहुत



  जानवर को बहुत प्यार करता जहाँ ।।
  पेड़ पौधों पे भी दुनिया देती है जाँ ।।
  दूरियाँ होशियारी से क़ायम रखे ,
  इंसाँ इंसाँ से बचता फिरे याँ वहाँ ।।
              -डॉ. हीरालाल प्रजापति


*मुक्त-मुक्तक - ख़िदमत अदब की............






ख़िदमत अदब की हमने दूसरे ही ढंग की ॥
अफ़्साना लिक्खा कोई ना कभी ग़ज़ल कही ॥
बस जब किसी अदीब की शाए हुई किताब ,
लेकर न मुफ़्त बल्कि वो ख़रीदकर पढ़ी ॥
( ख़िदमत=सेवा, अदब=साहित्य, अफ़्साना=उपन्यास,कहानी, अदीब=साहित्यकार, शाए=प्रकाशित )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति





मुक्तक : 432 - रिश्ता हो कोई ठोंक



रिश्ता हो कोई ठोंक बजाकर बनाइये ।।

शादी तो लाख बार सोचकर रचाइये ।।

अंजाम कितने ही है निगाहों के सामने ,

झूठी क़शिश को इश्क़ो मोहब्बत न जानिये ।।

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Monday, December 30, 2013

मुक्तक : 431 - बचपन में ही इश्क़


बचपन में ही इश्क़ ने उसको यों जकड़ा ।।
है चौदह का मगर तीस से लगे बड़ा ।।
जिससे दोनों हाथ से लोटा तक न उठे ,
वो प्याले सा एक हाथ से उठाए घड़ा ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

मुक्तक : 430 - सबपे पहले ही से


सबपे पहले ही से बोझे थे बेशुमार यहाँ ।।
अश्क़ टपकाने लगते सब थे बेक़रार यहाँ ।।
सोचते थे कि होता अपना भी इक दिल ख़ुशकुन
लेकिन ऐसा न मिला हमको ग़मगुसार यहाँ ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Sunday, December 29, 2013

मुक्तक : 429 - तक्लीफ़ो-ग़म-अलम से


तक्लीफ़ो-ग़म-अलम से , शादमानियों से क्या ?
बेलौस-कामयाबियों , बरबादियों से क्या ?
अब जब न तेरा मेरा कोई वास्ता रहा -
मुझे तेरी तंदुरुस्ती औ बीमारियों से क्या ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 428 - ज्यों आँखें मलते उठते हो


ज्यों आँखें मलते उठते हो यों ही भीतर से जागो तुम ।।
मैं आईना हूँ अपने सच से मत बचकर के भागो तुम ।।क़सीदे से कहीं उम्दा लगे ऐसी रफ़ू मारो ,
फटे दामन को कथरी की तरह मत हाय तागो तुम ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Saturday, December 28, 2013

मुक्तक : 427 - इतना अमीर था वो


इतना अमीर था वो ऐसा मालदार था ,
धन का कुबेर उसके आगे ख़ाकसार था !
ताउम्र फिर भी क्यों कमाई में लगा रहा ,
धेला भी जिसका ख़र्च बस कभी कभार था ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Friday, December 27, 2013

क़ाबिल ही नहीं होते...............

क़ाबिल ही नहीं होते ज़माने में कामयाब,
नालायकों ने भी छुआ है आसमान को ॥ 

अंधों के हाथ भी तो बटेरें लगें यहाँ ,

पाते हैं कितने भुस की जगह जाफ़रान को ?

-डॉ. हीरालाल प्रजापति

मुक्तक : 426 - तेरी पसंदगी


तेरी पसंदगी को सोचकर के कब कहे ?
दिल के ख़याल फ़ौरन औ’’ ज्यों के त्यों सब कहे ।।
ख़ुद के सुकून ख़ुद की तसल्ली की गरज से ,
जितने भी अपनी ग़ज़लों में मैंने क़तब कहे ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Thursday, December 26, 2013

मुक्तक : 425 - चाहता हूँ कि मेरे


चाहता हूँ कि मेरे दिल में तेरी मूरत हो ।।
तू किया करती मेरी रात दिन इबादत हो ।।
लैला मजनूँ से हीर राँझे टोला मारू से ,
अपनी दुनिया-ए-इश्क़ में ज़ियादा शोहरत हो ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 424 - चार कदम पर मंजिल हो तो



चार कदम पर मंजिल हो तो पहुँचें पैदल से ,
छोटी मोटी दूरी पार करें गर साइकल से ,
पर्यावरण रहेगा बेहतर सेहत चुस्त दुरुस्त ,
मिल जायेगी नजात किल्लते पेट्रोल डीजल से ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

मुक्तक : 423 - कई दिन के कुछ इक



कई दिन के कुछ इक भूखे पड़े कुत्तों को बुलवाना ।।
मुझे रख देना उनके आगे और तुम लोग हट जाना ।।
मेरी ख़्वाहिश है ठीक ऐसा ही करना मैं मरूँ जिस दिन ,
मेरे मुर्दे को मत मदफ़न में मेरे यारों दफ़नाना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Wednesday, December 25, 2013

मुक्तक : 422 - आँखें बारिश न बनें


आँखें बारिश न बनें क्यों ये मरुस्थल होएँ ?
जब मशीन हम नहीं तो दर्द में  क्यों रोएँ ?
जब कसक उठती है होती है घुटन सीने में ,
क्यों न अपनों से कहें ग़म अकेले चुप ढोएँ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

मुक्तक : 421 - तुझे कब उरूज मेरा


तुझे कब उरूज मेरा बस जवाल चाहिए था ?
मेरे चेहरे पे हमेशा इक मलाल चाहिए था ॥
तेरी रब ने सुनली तेरी ही मर्ज़ी के मुताबिक़ अब ,
मेरा हो गया है जीना जो मुहाल चाहिए था ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 420 - मूरत जो हुस्न की


मूरत जो हुस्न की कोई पहला बनाएगा ॥
वो हू ब हू बस आपका पुतला बनाएगा ॥
काढ़ेगा सताइश के क़सीदों पे क़सीदे ,
रंग रुपहला तो रूप सुनहला बनाएगा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

बुद्धि विधाता............



बुद्धि विधाता बाह्य जगत को इतनी बुद्धि तो दो ॥ 
तन प्रक्षालन करे न करे आत्म शुद्धि तो दो ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

तुझ जैसा नहीं और..............


तुझ जैसा नहीं और किसी देवता का रूप ॥ 
तुझ जैसा नहीं और कोई देवता अनूप ॥ 
देता है ज़रूरत के मुताबिक हरेक को ,
तू गर्मियों में बर्फ ठंड में कड़कती धूप । 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

मुक्तक : तुम मुझे चाहे मत कभी मिलना



तुम मुझे चाहे मत कभी मिलना ,
पर मुझे चाहना न तजना तुम ।।
तुम मेरा नाम कोई सूरत हो ,
भूलना मत भले न भजना तुम ।। 
सादगी के तुम्हारी कुछ आगे ,
हुस्न वाले कहीं न ठहरें सच ;
गर सँवरना हो तो मेरी ख़ातिर ,
ग़ैर के वास्ते न सजना तुम ।। 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

मुक्तक : 419 - कार सा जीवन था मेरा

कार सा जीवन था मेरा बैल गाड़ी हो गया ॥
मुझसे खरगोशों से कछुआ भी अगाड़ी हो गया ॥
हर कोई आतुर है मुझसे जानने पर क्या कहूँ ?
बाँटने वाले से मैं कैसे कबाड़ी हो गया ?
- डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Tuesday, December 24, 2013

मुक्तक :418 - कैसी रेलमपेल रे



कैसी रेलमपेल रे भैया कैसी रेलमपेल ॥ 

भीड़मभाड़ से दिखती खाली आज न कोई रेल ॥ 
हर हालत में अपनी मंजिल पाने के बदले ,
जिसको देखो उसको अपनी जाँ से खेले खेल ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

गिरता भूमिगत जल..................


गिरता भूमिगत जल का स्तर कर लो माप ॥
मोती मानुस चून न जल बिन उबरत बाप ॥ 
इसको व्यर्थ बहाना सचमुच पाप है पाप ,
कब पानी की कीमत को समझेंगे आप ॥ 

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

सिर्फ़ इक बार अपनी..............


सिर्फ़ इक बार अपनी 
शक्ल वो दिखा जाता ॥  

तरसती - ढूंढती 
आँखों को चैन आ जाता ॥   
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

देख रहे हो ऐसा..............


देख रहे हो ऐसा सचमुच कर जाऊंगा मैं ॥
मान जाओ हाँ करदो वरना मर जाऊंगा मैं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

किडनी लीवर तेरे............


किडनी लीवर तेरे खराब हो न जाएँ कहीं ॥ 
इतनी मत पी शराब होश खो न जाएँ कहीं ॥ 
- डॉ. हीरालाल प्रजापति 

कर्म दिवस-निशि और न कोई......





कर्म दिवस-निशि और न कोई दूजा करते हैं ॥
तेरी सुंदरता की प्रतिपल  पूजा करते हैं ॥
दृग मूँदे मन-चक्षु फाड़ कुछ स्वप्न-तले तेरे ,
धुर सन्यासी भी दर्शन का भूजा करते हैं ॥
(दृग=आँख ,मन-चक्षु=मन की आँख ,भूजा=भोग)
-डॉ. हीरालाल प्रजापति






मुक्तक : 417 - काँटा कोई नुकीला


काँटा कोई नुकीला लगे कब कली लगे ?
सच कह रहा हूँ ज़िंदगी न अब भली लगे ॥
जब से हुआ है उससे हमेशा को बिछुड़ना ,
बारिश भी उसकी सिर क़सम अजब जली लगे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Monday, December 23, 2013

मुक्तक : 416 - बिन कुछ किए धरे


बिन कुछ किए धरे वो होते जाएँ क़ामयाब ।।
हम लाख उठा-पटक करें न कुछ हो दस्तयाब ।।
दिल भी जलाएँ हम तो दूर हो न अंधकार ,
वो जुल्फ़ ही सँवार दें तो ऊगें आफ़्ताब ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 415 - कुछ बह्र की , कुछ जंगलों की


कुछ बह्र की , कुछ जंगलों की आग बने हैं ॥
कुछ शम्अ , कुछ मशाल , कुछ चराग़ बने हैं ॥
वो तो बनेगा सिर्फ़ किसी एक का मगर ,
उसके फ़िदाई लाखों लोग-बाग बने हैं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Sunday, December 22, 2013

मुक्तक : 414 - रफ़्ता-रफ़्ता तेज़ से


रफ़्ता-रफ़्ता तेज़ से भी तेज़ चलती है ॥
गर्मियों में बर्फ़ सी हर वक़्त गलती है ॥
शाह हो , दरवेश हो , बीमार या चंगा -
सबकी इस फ़ानी जहाँ में उम्र ढलती है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 413 - कपड़े-लत्तों में भी


कपड़े-लत्तों में भी हूँ नंग-धड़ंगों की तरह ॥
मेरा कंघा बग़ैर दाँत का , गंजों की तरह ॥
दिल-दिमाग़-आँख भी रखने के बावजूद अक्सर ,
दर-ब-दर खाता फिरूँ ठोकरें अंधों की तरह ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Saturday, December 21, 2013

मुक्तक : 412 - न शर्म से न हमने


ना शर्म से न हमने कभी बेझिझक लिया ॥
कल भी नहीं लिया था और न आज तक लिया ॥
पुचकारने वाले से सीखने की चाह में ,
खाकर हज़ार ठोकरें न इक सबक़ लिया ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 411 - सर्द ख़ामोशी से


सर्द ख़ामोशी से सुनता तो रहा वो रात भर ,
एक भी आँसू न टपका आँख से उसकी मगर !
क्या मेरी रूदादे-ग़म में मिर्च की धूनी नहीं ?
दास्ताने-इश्क़ मेरी आँख को है बेअसर ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 410 - जो कुछ हुआ है तुझको



जो कुछ हुआ है तुझको सब किस तरह बताऊँ ?
मैं अपने हारने की तुझे क्या वजह बताऊँ ?
जब गुल सहेजने का भी माद्दा रहा ना ,
फ़िर ख़ार को कहाँ की रखने जगह बताऊँ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...