Sunday, December 8, 2013

मुक्तक : 398 - होने को ख़ुश या रोने को


( चित्र Google Search से साभार )
होने को ख़ुश या रोने को उदास लोग बाग ।।
क्या क्या लगाते रहते हैं क़ियास लोग बाग ?
अंजाम कुछ भी अपने हाथ में नहीं वलेक ,
तकते हैं सब लकीरें आम-ओ-ख़ास लोग बाग ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (09-12-2013) को "हार और जीत के माइने" (चर्चा मंच : अंक-1456) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

वाह... उम्दा... भावपूर्ण...बहुत बहुत बधाई...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Prasanna Badan Chaturvedi जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...