Sunday, December 29, 2013

मुक्तक : 429 - तक्लीफ़ो-ग़म-अलम से


तक्लीफ़ो-ग़म-अलम से , शादमानियों से क्या ?
बेलौस-कामयाबियों , बरबादियों से क्या ?
अब जब न तेरा मेरा कोई वास्ता रहा -
मुझे तेरी तंदुरुस्ती औ बीमारियों से क्या ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...