Wednesday, December 25, 2013

मुक्तक : 419 - कार सा जीवन था मेरा

कार सा जीवन था मेरा बैल गाड़ी हो गया ॥
मुझसे खरगोशों से कछुआ भी अगाड़ी हो गया ॥
हर कोई आतुर है मुझसे जानने पर क्या कहूँ ?
बाँटने वाले से मैं कैसे कबाड़ी हो गया ?
- डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

बहुत सुंदर

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! VINOD SHILLA जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...