Friday, December 20, 2013

मुक्तक : 406 - मेरे सुलझाये ही मुझको


मेरे सुलझाये ही मुझको अब इक उलझन समझते हैं ।।
मेरी उँगली पकड़ चलते हुए रहजन समझते हैं ।।
किसी ने उनके तौबा-तौबा इतने कान भर डाले ,
मेरे पाले मुझे ही जान का दुश्मन समझते हैं ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...