Tuesday, December 24, 2013

मुक्तक : 417 - काँटा कोई नुकीला


काँटा कोई नुकीला लगे कब कली लगे ?
सच कह रहा हूँ ज़िंदगी न अब भली लगे ॥
जब से हुआ है उससे हमेशा को बिछुड़ना ,
बारिश भी उसकी सिर क़सम अजब जली लगे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...