Thursday, December 19, 2013

मुक्तक : 403 - निराधार , अनुचित


मुझ पर निराधार , अनुचित व अकारण रोष ।।
क्यों करते रहते हो ? मढ़कर झूठे दोष ।।
शत्रु नहीं तुम मेरे कैसे लूँ मैं मान ,
नित्य पिलाते विष कहते हो करते पोष ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...