सर्द ख़ामोशी से सुनता तो रहा वो रात भर ,
एक भी आँसू न टपका आँख से उसकी मगर !
क्या मेरी रूदादे-ग़म
में मिर्च की धूनी नहीं ?
दास्ताने-इश्क़ मेरी आँख को है बेअसर ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
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