Saturday, December 21, 2013

मुक्तक : 411 - सर्द ख़ामोशी से


सर्द ख़ामोशी से सुनता तो रहा वो रात भर ,
एक भी आँसू न टपका आँख से उसकी मगर !
क्या मेरी रूदादे-ग़म में मिर्च की धूनी नहीं ?
दास्ताने-इश्क़ मेरी आँख को है बेअसर ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...