Monday, December 23, 2013

मुक्तक : 415 - कुछ बह्र की , कुछ जंगलों की


कुछ बह्र की , कुछ जंगलों की आग बने हैं ॥
कुछ शम्अ , कुछ मशाल , कुछ चराग़ बने हैं ॥
वो तो बनेगा सिर्फ़ किसी एक का मगर ,
उसके फ़िदाई लाखों लोग-बाग बने हैं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...