Sunday, December 22, 2013

मुक्तक : 413 - कपड़े-लत्तों में भी


कपड़े-लत्तों में भी हूँ नंग-धड़ंगों की तरह ॥
मेरा कंघा बग़ैर दाँत का , गंजों की तरह ॥
दिल-दिमाग़-आँख भी रखने के बावजूद अक्सर ,
दर-ब-दर खाता फिरूँ ठोकरें अंधों की तरह ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

बहुत सुंदर रचना

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! VINOD SHILLA जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...