Saturday, December 31, 2016

इक जनवरी को मैं !!




न काटे से कटूँ ; चीरे चिरूँ , इक जनवरी को मैं !!
न ही घेरे किसी ग़म के घिरूँ , इक जनवरी को मैं !!
न पूछो क्या है मुझसे राज़ लेकिन झूठ ना बोलूँ ,
किसी भी साल की नचता फिरूँ , इक जनवरी को मैं !!
रहूँ चाहे बहुत बीमार सा , इक जनवरी को मैं !!
न चल पाऊँ किसी दीवार सा , इक जनवरी को मैं !!
रहूँ शीशे सा चकनाचूर , गन्ने सा पिरा लेकिन ,
मनाता हूँ किसी त्योहार सा , इक जनवरी को मैं !!
रहूँ ख़ुश या बला का ग़मज़दा , इक जनवरी को मैं !!
मगर तुम देख लेना यह सदा , इक जनवरी को मैं !!
रहूँ मस्रूफ़ या फुर्सत , रहूँ घर पर या फिर बाहर ,
चला आता हूँ खिंचकर मैक़दा , इक जनवरी को मैं !!
फँसा था सच फटे से हाल में , इक जनवरी को मैं !!
किसी के इश्क़ के जंजाल में , इक जनवरी को मैं !!
कि अपनी जाँ बचाने को जिसे मुझको भुलाना था ,
उसे भूला था सालों साल में , इक जनवरी को मैं !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Wednesday, December 28, 2016

ग़ज़ल : 221 - तुझमें ज़िद आर्ज़ू की




उम्र ढलती है मेरी तो ढलती रहे ।।
हाँ जवानी तुम्हारी सँभलती रहे ।।1।।
अपनी सब हसरतें मैं मनालूँ अगर ,
तुझमें ज़िद आर्ज़ू की मचलती रहे ।।2।।
मौत जब तक न आए फ़क़त ज़िंदगी ,
पाँव बिन भी ग़ज़ब तेज़ चलती रहे ।।3।।
सेंक ले अपनी रोटी तू बेशक़ मगर ,
दाल मेरी भी यों कर कि गलती रहे ।।4।।
भैंस होगी न गोरी भले रात-दिन ,
गोरेपन की सभी क्रीम मलती रहे ।।5।।
आदतन आँख पीरी में भी इश्क़ की ,
हुस्न की चिकनी तह पर फिसलती रहे ।।6।।
इश्क़ की आग इक बार लग जाए फिर ,
गहरे पानी में भी धू-धू जलती रहे ।।7।।
तू मिले ना मिले दिल में हसरत मगर ,
चाहता हूँ तेरी मुझमें पलती रहे ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Thursday, December 22, 2016

ग़ज़ल : 220 - शर्म बैठी है पर्दों में



जैसे ख़ुशबू गुलाबों में भी ना दिखे ।।
उनको नश्शा शराबों में भी ना दिखे ।।1।।
उस हसीं चश्म को भी मैं अंधा कहूँ ,
हुस्न जिसको गुलाबों में भी ना दिखे ।।2।।
बदनसीब इस क़दर कौन होगा भला ,
दिलरुबा जिसको ख़्वाबों में भी ना दिखे ?3।।
शर्म बैठी है पर्दों में छिपके कहीं ,
बेहयाई नकाबों में भी ना दिखे ।।4।।
ढूँढो सहराइयों में न तहज़ीब तुम ,
अब सलीका जनाबों में भी ना दिखे ।।5।।
अक़्ल उनको कहीं से भी मिलती नहीं ,
इल्म उनको किताबों में भी ना दिखे ।।6।।
( हसीं चश्म = सुनयन , सहराइयों = असभ्य )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति  

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...