न काटे से कटूँ ; चीरे चिरूँ , इक जनवरी को मैं
!!
न ही घेरे किसी ग़म के घिरूँ
, इक जनवरी को मैं !!
न पूछो क्या है मुझसे राज़
लेकिन झूठ ना बोलूँ ,
किसी भी साल की नचता फिरूँ
, इक जनवरी को मैं !!
रहूँ चाहे बहुत बीमार सा
, इक जनवरी को मैं !!
न चल पाऊँ किसी दीवार सा
, इक जनवरी को मैं !!
रहूँ शीशे सा चकनाचूर , गन्ने सा पिरा लेकिन ,
मनाता हूँ किसी त्योहार
सा , इक जनवरी को मैं !!
रहूँ ख़ुश या बला का ग़मज़दा , इक जनवरी को मैं !!
मगर तुम देख लेना यह सदा , इक जनवरी को मैं !!
रहूँ मस्रूफ़ या फुर्सत , रहूँ घर पर या फिर बाहर ,
चला आता हूँ खिंचकर मैक़दा , इक जनवरी को मैं !!
फँसा था सच फटे से हाल में , इक जनवरी को मैं !!
किसी के इश्क़ के जंजाल में , इक जनवरी को मैं !!
कि अपनी जाँ बचाने को जिसे
मुझको भुलाना था ,
उसे भूला था सालों साल में , इक जनवरी को मैं !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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