कहीं पर रात में आधी ; सजे अरमान बिकते हैं ॥
कहीं पर दिन दहाड़े मौत के सामान बिकते हैं
॥
ख़रीदें ज्यों लतीफ़ों की किताबें लोग हाथों
हाथ ,
नहीं क्यों दाग़ , ग़ालिब , मीर के दीवान बिकते हैं ?
कहीं पर लोग लोगों की बचा देते हैं जाँ यों
ही ,
कहीं अपनों के अपनों पर किए एहसान बिकते हैं
॥
हवा मुँहमाँगी क़ीमत पे वहाँ बिकती है लेकिन
मुफ़्त,
अगरबत्ती , इतर , क़ाफ़ूर औ’ लोबान बिकते हैं ॥
अगर लग जाएँ ऊँची बोलियाँ तो फिर जहाँ में
सच ,
याँ अच्छे अच्छों के हाँ दीं , ज़मीर , ईमान बिकते हैं ॥
( लतीफों
= चुटकुलों , दीवान = एक विशिष्ट प्रकार का
ग़ज़ल संग्रह , इतर = इत्र , क़ाफ़ूर = कपूर
, दीं = धर्म )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति