ख़ुश
वो मुझको यों हमेशा ही रुला के होते हैं ॥
राधिका
को कृष्ण ज्यों झूला झुला के होते हैं ॥ 1 ॥
याद
तेरी जो न आए तो मैं रो पड़ता हूँ याँ ,
सब
जहाँ ख़ुश बेवफ़ाओं को भुला के होते हैं ॥ 2 ॥
अपने
पैरों को वो मेरे आँसुओं की धार से ,
ख़ुश
बहुत ख़ुश आए दिन टप-टप धुला के होते हैं ॥ 3 ॥
सामने
ही वो मेरे ; मेरे रक़ीबों को बड़े ,
प्यार
से पास अपने ख़ुश हक़ से बुला के होते हैं ॥ 4 ॥
मैं
तो जल उठता हूँ तब क़ागज़ सा जब अपना मुझे ,
हाथ वो मर्ज़ी से अपनी ख़ुश छुला के होते हैं ॥ 5 ॥
अपने
पत्थर के पहाड़ों को हमेशा ही बड़े ,
ख़ुश
मेरे सर पे वो रख-रख कर ढुला के होते हैं ॥ 6 ॥
ख़ुद
को सोने के हमेशा बाँट रखकर औ’ मुझे ,
बाँझ
मिट्टी के डलों से ख़ुश तुला के होते हैं ॥ 7 ॥
मेरी
नींदों के लिए वो जागते हैं तब कहीं ,
ख़ुश
मुझे सब रात लोरी गा सुला के होते हैं ॥ 8 ॥
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
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