Friday, March 30, 2018

मुक्त मुक्तक : 884 - प्रेम


पूर्णतः करते स्वयं को जब समर्पित !!
प्रेम तब बैरी से कर पाते हैं अर्जित !!
जान लोगे यदि गुलाबों से मिलोगे ,
पुष्प कुछ काँटों में क्यों रहते सुरक्षित ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Thursday, March 29, 2018

ग़ज़ल : 252 - वो नहीं होगा मेरा


वो नहीं होगा मेरा ये जानता हूँ मैं !!
फिर भी उसको अपनी मंज़िल मानता हूँ मैं !!
दोस्त अब हरगिज़ नहीं वह रह गया मेरा ,
फिर भी उस से दुश्मनी कब ठानता हूँ मैं !!
पीठ में मेरी वो ख़ंजर भोंकता रहता ,
उसके सीने पर तमंचा तानता हूँ मैं !!
वह मुझे ऊपर ही ऊपर जान पाया है ,
उसको तो अंदर तलक पहचानता हूँ मैं !!
सूँघते ही जिसको वो बेहोश हो जाते ,
रात दिन उस बू को दिल से टानता हूँ मैं !!
वो मेरी लैला है 'लैला' 'लैला' चिल्लाता ,
ख़ाक सह्रा की न यों ही छानता हूँ मैं !!
( टानता = सूँघता , सह्रा = जंगल )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Saturday, March 24, 2018

मुक्त मुक्तक : 883 - इक पाँव


क्या शह्र फ़क़त , क़स्बा ही न बस , 
इक गाँव से भी चल सकते हैं !!
कोटर , बिल , माँद , दरार , क़फ़स से 
ठाँव से भी चल सकते हैं !!
होते हैं दो पंख भी बेमानी 
उड़ने का इरादा हो न अगर ,
मंज़िल की मगर धुन हो तो कटे 
इक पाँव से भी चल सकते हैं !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Thursday, March 22, 2018

मुक्त मुक्तक : 882 - कुत्ता



गर्दिश तक में कुत्ता भी आराम से सोता है !!
मीठे ख़्वाबों के दरिया में लेता गोता है !!
अहमक़ इंसाँ ख़ुशियों में भी करवट ले-लेकर ,
बिस्तर पर सब रात ही बैठ-उठ रोता-धोता है !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Wednesday, March 14, 2018

मुक्त मुक्तक : 881 - बाँग


बाँग मुर्गे सी लगाओ जो 
जगाना हो तो !!
गाओ बुलबुल सा किसी को जो 
सुनाना हो तो !!
फाड़ चिल्लाओ गला 
चुप न रहो तुमको उसे ,
जो न आता हो अगर पास 
बुलाना हो तो !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Tuesday, March 13, 2018

मुक्त मुक्तक : 880 - एक कोंपल........



एक कोंपल था पका पत्ता न था ,
शाख से अपनी वो फिर क्यों झर गया ?
हमने माना सबकी एक दिन मृत्यु हो ,
किंतु क्यों वह शीघ्र इतने मर गया ?
लोग बतलाते हैं था वह अति भला ,
रास्ते सीधे सदा ही वह चला  ,
रह रहा था जन्म से परदेस में ,
आज होटल छोड़ अपने घर गया ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Friday, March 9, 2018

ग़ज़ल : 251 - खोए-खोए ही रहते हैं


मेरी तक्लीफ़ का उनको अंदाज़ क्या ?
हँसने का भी उन्हें है पता राज़ क्या ?
आजकल खोए-खोए ही रहते हैं तो '
कर चुके वो मोहब्बत का आग़ाज़ क्या ?
जो बुलाते हैं दुत्कार के फिर मुझे ,
उनकी दहलीज़ मैं जाऊँगा बाज़ क्या ?
ऐसी चलती है उनकी ज़ुबाँ दोस्तों ,
उसके आगे चलेगी कोई गाज़ क्या ?
पेट भी जो हमारा न भर पाए गर ,
उस हुनर पर करें भी तो हम नाज़ क्या ?
तोहफ़े में मुझे तुम न संदूक दो ,
मुझसा ख़ाली रखेगा वहाँ साज़ क्या ?
( बाज़ = पुनः / गाज़ = कैंची )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Friday, March 2, 2018

ग़ज़ल : 250 - कुत्ते सी हरक़त



आपस में बेमक़सद लड़ते मरते देखा है !!
इंसाँ को कुत्ते सी हरक़त करते देखा है !!
गिरगिट से भी ज्यादा रंग बदलने वाले को ,
मैंने होली में रंगों से डरते देखा है !!
गर तुमने देखी है चूहे से डरती बिल्ली ,
मैंने भी बिल्ली से कुत्ता डरते देखा है !!
प्यार में अंधे कितने ही फूलों को हँस-हँसकर ,
नोक पे काँटों की होठों को धरते देखा है !!
हैराँ हूँ कल मैंने इक ज्वालामुखी के मुँह से ,
लावे की जा ठण्डा झरना झरते देखा है !!
कैसा दौर है कल इक भूखे शेर को जंगल में ,
गोश्त न मिलने पर सच घास को चरते देखा है !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...