मेरी तक्लीफ़ का उनको अंदाज़ क्या ?
हँसने का भी उन्हें है पता राज़ क्या ?
आजकल खोए-खोए ही रहते हैं तो '
कर चुके वो मोहब्बत का आग़ाज़ क्या ?
जो बुलाते हैं दुत्कार के फिर मुझे ,
उनकी दहलीज़ मैं जाऊँगा बाज़ क्या ?
ऐसी चलती है उनकी ज़ुबाँ दोस्तों ,
उसके आगे चलेगी कोई गाज़ क्या ?
पेट भी जो हमारा न भर पाए गर ,
उस हुनर पर करें भी तो हम नाज़ क्या ?
तोहफ़े में मुझे तुम न संदूक दो ,
मुझसा ख़ाली रखेगा वहाँ साज़ क्या ?
( बाज़ = पुनः / गाज़ = कैंची )
( बाज़ = पुनः / गाज़ = कैंची )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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