Saturday, March 24, 2018

मुक्त मुक्तक : 883 - इक पाँव


क्या शह्र फ़क़त , क़स्बा ही न बस , 
इक गाँव से भी चल सकते हैं !!
कोटर , बिल , माँद , दरार , क़फ़स से 
ठाँव से भी चल सकते हैं !!
होते हैं दो पंख भी बेमानी 
उड़ने का इरादा हो न अगर ,
मंज़िल की मगर धुन हो तो कटे 
इक पाँव से भी चल सकते हैं !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...