शुद्ध गंगाजल से आसव हो गया हूँ ।।
शिव था बिन तेरे पुरा-शव हो गया हूँ ।।
बुलबुलों से कोयलों से भी मधुर मैं ,
तुम नहीं तो मूक-नीरव हो गया हूँ ।।
जानता हूँ तुम नहीं होओगे मेरे ,
क्या करूँ हृद-आत्म से तव हो गया हूँ ?
तुम रहे जैसे थे वैसे ही तो मैं भी ,
कौन सा प्राचीन से नव हो गया हूँ ?
शक्य शेरों को भी मैं पहले नहीं था ,
अब श्रृगालों को भी संभव हो गया हूँ !!
जैसे बिन राधा हुए थे कृष्ण , तुम बिन
मैं भी त्यों सियहीन राघव हो गया हूँ ।।
( आसव = शराब , पुरा-शव = पुरानी लाश , मूक = चुप , नीरव = बिना शब्द का , तव = तुम्हारा , शक्य = संभव , श्रृगाल = गीदड़ , राघव = श्रीराम )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति