राख़ को आग बनाने की न कर
कोशिश तू ॥
मर चुका हूँ मैं जगाने की
न कर कोशिश तू ॥ 1 ॥
मुझको मालूम है कितना तू
भरा है ग़म से ,
दर्द हँस – हँस के छिपाने
की न कर कोशिश तू ॥ 2 ॥
मैं तलातुम में किनारों
से तो बचकर आया ,
मुझको फिर पार लगाने की
न कर कोशिश तू ॥ 3 ॥
ऊँची मीनार से दे दे तू
यक़ीनन धक्का ,
अपनी आँखों से गिराने की
न कर कोशिश तू ॥ 4 ॥
मैं हूँ लोहे का चना मुझको
समझकर किशमिश ,
अपने दाँतों से चबाने की
न कर कोशिश तू ॥ 5 ॥
दिल मेरा भाग गया कब का
चुराकर कोई ,
मुझको बेकार रिझाने की न
कर कोशिश तू ॥ 6 ॥
( तलातुम = बाढ़ )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति