Monday, February 26, 2018

मुक्त मुक्तक : 879 - अच्छी नहीं ज़रा भी.....



अच्छी नहीं ज़रा भी , है इस क़दर ख़राब !!
कहते हैं लोग मेरी है ज़िंदगी अज़ाब !!
दिन-रात इतनी मैंने पी है कि अब तो आह !
मेरी रगों में बहती ख़ूँ की जगह शराब !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Sunday, February 25, 2018

मुक्त मुक्तक : 878 - यह को वह .......


तजकर कभी , कभी सब कुछ गह लिखा गया !!
पीकर कभी , कभी प्यासा रह लिखा गया !!
लिखने का जादू सर चढ़ बोला तो बोले सब ,
ये क्या कि मुझसे ' यह ' को भी ' वह ' लिखा गया !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

मुक्त मुक्तक : 877 - गूँगी तनहाई.......


गूँगी तनहाई में चुपचाप जब मैं रहता हूँ !!
रौ में जज़्बातों की तिनके से तेज़ बहता हूँ !!
लिखने लगता हूँ मैं तब शोक-गीत रोते हुए ,
या कोई शोख़ ग़ज़ल गुनगुना के कहता हूँ !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Monday, February 19, 2018

चित्र काव्य : वो


बहुत ही ख़ास बहुत ही अज़ीज़ था मेरा , वो उस जगह पे कहीं हाय खो गया इक दिन ॥ 
चुरा के मुझ से मेरा दिल क़रार की नींदें , बग़ैर मुझ को बताये ही सो गया इक दिन ॥ 
-डॉ॰ हीरालाल प्रजापति 

Sunday, February 18, 2018

चित्र काव्य - खम्भा



यों ही कमर पे हाथ न रखकर खड़ा हूँ मैं !!
खंभे सा उसके इंतज़ार में गड़ा हूँ मैं !!
बैठे हैं वो न आने की क़सम वहाँ पे खा ,
उनको यहाँ बुलाने की ज़िद पर अड़ा हूँ मैं !! 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Saturday, February 17, 2018

मुक्त मुक्तक : 876 - रक्तरंजित


मैंने पाया है क्या और किससे हूँ वंचित ?
पूर्ण कितना हूँ मैं और कितना हूँ खंडित ?
 भेद पूछो जो क्या है मेरी लालिमा का ,
 जान जाओगे मैं कितना हूँ रक्तरंजित ?
   -डॉ. हीरालाल प्रजापति

Wednesday, February 14, 2018

ग़ज़ल : 249 - सिर को झुकाना पड़ा


                  
आँखों को आज उससे चुराना पड़ा मुझे !!
 कुछ कर दिया कि सिर को झुकाना पड़ा मुझे !!
जिसको मैं सोचता था ज़मीं में ही गाड़ दूँ ,
उसको फ़लक से ऊँचा उठाना पड़ा मुझे !!
उसको हमेशा खुलके हँसाने के वास्ते ,
कितना अजीब है कि रुलाना पड़ा मुझे !! 
उसकी ही बात उससे किसी बात के लिए ,
कहने के बदले उल्टा छुपाना पड़ा मुझे !!
नौबत कुछ ऐसी आयी कि दिन-रात हर घड़ी ,
रटता था जिसको उसको भुलाना पड़ा मुझे !!
दुश्मन ज़रूर था वो मगर इतना था हसीं ,
उसको जो जलते देखा बुझाना पड़ा मुझे !!
सचमुच बस एक बार बुलंदी को चूमने ,
ख़ुद को हज़ार बार गिराना पड़ा मुझे !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Thursday, February 8, 2018

ग़ज़ल : 248 - चीता बना दे.........


                 
  मत बिलाशक़ तू कोई भी नाख़ुदा दे !!
                   सिर्फ़ मुझको तैरने का फ़न सिखा दे !!
                     जो किसी के पास में हरगिज़ नहीं हो ,
                     मुझको कुछ ऐसी ही तू चीज़ें जुदा दे !!
                      सबपे ही करता फिरे अपना करम तू ,
                     मुझपे भी रहमत ज़रा अपनी लुटा दे !!
                    जिस्म तो शुरूआत से हासिल है उसका ,
                   तू अगर मुम्किन हो उसका दिल दिला दे !!
                        सिर्फ़ ग़म ही ग़म उठाते फिर रहा हूँ ,
                  कुछ तो सिर पर ख़ुशियाँ ढोने का मज़ा दे !!
                       सबके आगे जिसने की तौहीन मेरी ,
                      मेरे क़दमों में तू उसका सिर झुका दे !!
                        हर कोई कहता है मैं इक केंचुआ हूँ ,
                      तू हिरन मुझको या फिर चीता बना दे !!
                              -डॉ. हीरालाल प्रजापति
                           

Saturday, February 3, 2018

मुक्त मुक्तक : बिन तुम्हारे.......


             अति मधुर संगीत कर्कश चीख़-चिल्लाहट लगे !!
                बुलबुलों का गान भूखे सिंह की गुर्राहट लगे !!
            साथ जब तक तुम थे भय लगता था मुझको मृत्यु से ,
                बिन तुम्हारे ज़िंदगी से खीझ उकताहट लगे !!
                             -डॉ. हीरालाल प्रजापति   

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...