मत बिलाशक़ तू कोई भी नाख़ुदा दे !!
सिर्फ़ मुझको तैरने का फ़न सिखा दे !!
जो किसी के पास में हरगिज़ नहीं हो ,
मुझको कुछ ऐसी ही तू चीज़ें जुदा दे !!
सबपे ही करता फिरे अपना करम तू ,
मुझपे भी रहमत ज़रा अपनी लुटा दे !!
जिस्म तो शुरूआत से हासिल है उसका ,
तू अगर मुम्किन हो उसका दिल दिला दे !!
सिर्फ़ ग़म ही ग़म उठाते फिर रहा हूँ ,
कुछ तो सिर पर ख़ुशियाँ ढोने का मज़ा दे !!
सबके आगे जिसने की तौहीन मेरी ,
मेरे क़दमों में तू उसका सिर झुका दे !!
हर कोई कहता है मैं इक केंचुआ हूँ ,
तू हिरन मुझको या फिर चीता बना दे !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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