मेरे खिलते ही पूरा मुझको भी तोड़ा जाता ॥
यूँ ही गुलशन में मुझ कली को न छोड़ा जाता ॥
ख़ूबसूरत भी तो नहीं न मुअत्तर हूँ मैं ,
वर्ना मुझको भी इत्र को न निचोड़ा जाता ?
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति
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