Monday, May 23, 2016

मुक्तक : 839 - पाँव की जूती



कल की चीज़ों की अभी की आज की रक्खी ॥
पाँव की जूती की सिर के ताज की रक्खी ॥
कौन सा बाज़ार है ये जिसमे तितली की ,
बेचने वालों ने क़ीमत बाज़ की रक्खी ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...