Monday, May 30, 2016

मुक्तक : 843 - मेरे खिलते ही




मेरे खिलते ही पूरा मुझको भी तोड़ा जाता ॥
यूँ ही गुलशन में मुझ कली को न छोड़ा जाता ॥
ख़ूबसूरत भी तो नहीं न मुअत्तर हूँ मैं ,
वर्ना मुझको भी इत्र को न निचोड़ा जाता ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...