Sunday, May 22, 2016

मुक्तक : 838 - कबरी बिल्ली हो गए ॥



हम जबलपुर से यकायक सीधे दिल्ली हो गए ॥
एक चूहे से बिफरती कबरी बिल्ली हो गए ॥
मुल्ला नसरुद्दीन थे लेकिन हुआ फ़ुर्सत में यों ,
मन के लड्डू खाते-खाते शेख़चिल्ली हो गए ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...