Tuesday, May 17, 2016

मुक्तक : 837 - भूखा भेड़िया




गाय को भूखा भेड़िया या शेर होने पे ॥
आबे ज़मज़म में हलाहिल खुला डुबोने पे ॥
आह को लेके क्या मेरी तबाह होना है ?
रूह आमादा मेरी मत करो या ! रोने पे ॥
( आबे ज़मज़म = अमृत जल , हलाहिल = कालकूट विष , रूह = आत्मा , आमादा = उद्धत , तत्पर )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...