Sunday, May 29, 2016

मुक्तक : 842 - लेना सबक ज़रूर




भूले फटकता था न कभी पास जो मेरे ,
क्यों वक़्त वो निकाल के अब रोज़ ही आता ?
ऐसा नहीं कि उसको मैं अच्छा सा लगे हूँ ,
ये भी नहीं कि उसको मेरा रोब लुभाता !!
हैरत न खाना वज़्ह को आप इसकी समझकर ,
लेना सबक ज़रूर मगर सच ही समझकर ,
जाना है जबसे उसने कि मैं मोम हूँ तो बस ,
कुछ धूप , थोड़ी आँच वो रख साथ में लाता ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...