Sunday, May 8, 2016

मुक्तक : 830 - नाग की तरह ॥



डसती थी याद दिल को स्याह नाग की तरह ॥
जलता था तन ये जंगलों की आग की तरह ॥
तेरे बिना थी ज़िंदगी बग़ैर आब की ,
इक अंधी बावड़ी , बड़े तड़ाग की तरह ॥
( स्याह=काला ,बग़ैर आब की=जल विहीन ,अंधी बावड़ी=सीढ़ीयुक्त बहुत गहरा कुआँ ,तड़ाग=तालाब ,सरोवर )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...