Tuesday, May 17, 2016

मुक्तक : 836 - पानी पर से हाथी



जैसे पानी पर से हाथी चल निकल आया ॥
काले पत्थर में से मीठा जल निकल आया ॥
रात-दिन मैं ढूँढता था जिसको मर-मर कर ,
मेरी मुश्किल का कुछ ऐसे हल निकल आया ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...