बेवफ़ा कलमुँहा , मुँहजला इश्क़ है ॥
किसने तुझसे कहा इक बला इश्क़ है ?1॥
हैं अगर कोई तो ; वो हैं आशिक़ बुरे ,
इश्क़ को मत बुरा कह ; भला इश्क़ है ॥2॥
है सुपाड़ी के जैसा कभी तो कभी ,
इक पके आम सा पिलपिला इश्क़ है ॥3॥
है मुँँहासा कभी चाँद पे दाग़ सा ,
तो कभी तलवे का आबला इश्क़ है ॥4॥
आये अपनी पे जब सूर्य पर नाँ जले ,
नाँ हिमालय पे चढ़के गला इश्क़ है ॥5॥
है कभी बस ज़ुबाँ पे थिरकता हुआ ,
औ’ कभी दिल ही दिल
में पला इश्क़ है ॥6॥
है कभी एक लू का थपेड़ा कभी ,
बाद गर्मी के पहला झला इश्क़ है ॥7॥
हुस्न के दर पे धरना दे बैठा हुआ ,
टालने से कभी नाँ टला इश्क़ है ॥8॥
है कभी ख़ुद के हाथों तराशा हुआ ,
औ’ कभी एक साँचा
ढला इश्क़ है ॥9॥
नाँ कभी शाहराहों न गलियों पे बस ,
अपनी मंज़िल की रह पे चला इश्क़ है ॥10॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति