Saturday, August 6, 2016

मुक्तक : 855 - मीठी झील तक गए ॥



कब अपने शहर की ही मीठी झील तक गए ॥
दो - चार - छः नहीं हजारों मील तक गए ॥
प्यासे थे इस क़दर कि सब कुएँ , तलाव पी ;
गंगो–जमन , चनाब , मिश्र – नील तक गए ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...