Wednesday, August 3, 2016

मुक्तक : 854 - इक आदमी लोहे का




टूटा न जो चाबुक की दमादम सड़ाक से ॥
टूटा न जो बिजली की भयंकर कड़ाक से ॥
इक आदमी लोहे का तेरी खा के गालियाँ ,
मानिंदे बुते शीशा वो टूटा तड़ाक से ॥
( दमादम = निरंतर , मानिंदे बुते शीशा = काँच के पुतले जैसा )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...