Wednesday, August 10, 2016

*मुक्त-मुक्तक : 856 - माथे धर वंदन होता ॥

प्रातः के पश्चात सांध्य भी माथे धर वंदन होता ॥
तुलसी की मानस का घर-घर में सस्वर वाचन होता ॥
पढ़कर मनोरंजन ना कर यदि हृदयंगम सब करते तो ,
मर्यादाओं का जग में सच क्योंकर उल्लंघन होता ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...