हँसना मत , हैराँ न होना
देखकर मेरा जतन ।।
कर रहा हूँ आग से ठंडी
जो मैं अपनी जलन ।।1।।
कैसे कर जाते हैं लोग
इसकी बुराई या ख़ुदा ,
मुझको तो जैसा भी है
लगता है जन्नत सा वतन ।।2।।
दिल नहीं चाँदी हो , सोना गर नहीं हो रूह तो ,
है वो ख़ुशबूदार फूलों से
निरा खाली चमन ।।3।।
उनसे तुरपाई को माँगी थी
मदद ले आये वो ,
तेग़ सूई की जगह धागे की
जा मोटी रसन ।।4।।
नाज़ुकी में वो गुलाबी पंखुरी से नर्म है ,
और सख़्ती में है कोहेनूर सी वो गुलबदन ।।5।।
नाज़ुकी में वो गुलाबी पंखुरी से नर्म है ,
और सख़्ती में है कोहेनूर सी वो गुलबदन ।।5।।
( हैराँ =चकित ,रूह =आत्मा ,निरा खाली =सर्वथा
रिक्त ,तेग़ =तलवार ,जा =जगह ,रसन =रस्सी )
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
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