Friday, March 2, 2018

ग़ज़ल : 250 - कुत्ते सी हरक़त



आपस में बेमक़सद लड़ते मरते देखा है !!
इंसाँ को कुत्ते सी हरक़त करते देखा है !!
गिरगिट से भी ज्यादा रंग बदलने वाले को ,
मैंने होली में रंगों से डरते देखा है !!
गर तुमने देखी है चूहे से डरती बिल्ली ,
मैंने भी बिल्ली से कुत्ता डरते देखा है !!
प्यार में अंधे कितने ही फूलों को हँस-हँसकर ,
नोक पे काँटों की होठों को धरते देखा है !!
हैराँ हूँ कल मैंने इक ज्वालामुखी के मुँह से ,
लावे की जा ठण्डा झरना झरते देखा है !!
कैसा दौर है कल इक भूखे शेर को जंगल में ,
गोश्त न मिलने पर सच घास को चरते देखा है !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...