Sunday, December 22, 2013

मुक्तक : 414 - रफ़्ता-रफ़्ता तेज़ से


रफ़्ता-रफ़्ता तेज़ से भी तेज़ चलती है ॥
गर्मियों में बर्फ़ सी हर वक़्त गलती है ॥
शाह हो , दरवेश हो , बीमार या चंगा -
सबकी इस फ़ानी जहाँ में उम्र ढलती है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

बहुत सुंदर

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! VINOD SILLA जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...