Thursday, December 26, 2013

मुक्तक : 423 - कई दिन के कुछ इक



कई दिन के कुछ इक भूखे पड़े कुत्तों को बुलवाना ।।
मुझे रख देना उनके आगे और तुम लोग हट जाना ।।
मेरी ख़्वाहिश है ठीक ऐसा ही करना मैं मरूँ जिस दिन ,
मेरे मुर्दे को मत मदफ़न में मेरे यारों दफ़नाना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (27-12-13) को "जवानी में थकने लगी जिन्दगी है" (चर्चा मंच : अंक-1474) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

Adarsh tiwari said...

shandar

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Adarsh Kumar जी !

Unknown said...

ANUPAM !!!

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...