कर्म दिवस-निशि और न कोई
दूजा करते हैं ॥
तेरी सुंदरता की प्रतिपल
पूजा करते हैं ॥
दृग मूँदे मन-चक्षु फाड़
कुछ स्वप्न-तले तेरे ,
धुर सन्यासी भी दर्शन का
भूजा करते हैं ॥
(दृग=आँख ,मन-चक्षु=मन की आँख ,भूजा=भोग)
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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