Tuesday, December 31, 2013

*मुक्त-मुक्तक - ख़िदमत अदब की............






ख़िदमत अदब की हमने दूसरे ही ढंग की ॥
अफ़्साना लिक्खा कोई ना कभी ग़ज़ल कही ॥
बस जब किसी अदीब की शाए हुई किताब ,
लेकर न मुफ़्त बल्कि वो ख़रीदकर पढ़ी ॥
( ख़िदमत=सेवा, अदब=साहित्य, अफ़्साना=उपन्यास,कहानी, अदीब=साहित्यकार, शाए=प्रकाशित )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति





1 comment:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

आपको भी शुभकामनाएँ , मयंक जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...