Monday, December 30, 2013

मुक्तक : 430 - सबपे पहले ही से


सबपे पहले ही से बोझे थे बेशुमार यहाँ ।।
अश्क़ टपकाने लगते सब थे बेक़रार यहाँ ।।
सोचते थे कि होता अपना भी इक दिल ख़ुशकुन
लेकिन ऐसा न मिला हमको ग़मगुसार यहाँ ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...