दिल में देता न अगर दर्द को पनाह कभी ,
क्या यों मुमकिन थी
मेरी शायरी की वाह कभी ?
कैसे कह लेते हैं दिलशाद लोग ग़म पे ग़ज़ल ?
मेरे मुँह से तो ख़ुशी
में न निकले आह कभी ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
1 comment:
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