होता है तभी खिड़कियों
का डुलना-खड़कना ;
फ़िर भी न चुप्पियों
में ख़लल करने फड़कना ,
मजबूरियों में जबकि
तुंद आँधियाँ चलें –
बादल में बिजलियों
का हो पुरशोर कड़कना ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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