Tuesday, December 24, 2013

मुक्तक :418 - कैसी रेलमपेल रे



कैसी रेलमपेल रे भैया कैसी रेलमपेल ॥ 

भीड़मभाड़ से दिखती खाली आज न कोई रेल ॥ 
हर हालत में अपनी मंजिल पाने के बदले ,
जिसको देखो उसको अपनी जाँ से खेले खेल ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

4 comments:

Unknown said...

बस चार लाइन,हद है कोई तो शिक्षा भी दो

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Hema Pal जी ! आप समझदार हैं ।

Unknown said...

बहुत सुंदर

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! VINOD SHILLA जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...